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बुधवार, 1 जनवरी 2014

नये साल मे केवल कलेंडर ही क्यो ? जीने का नजरिया भी बद्ले ।.............

नये साल मे केवल कलेंडर ही क्यो जीने क नजरिया भी बद्ले ।.............

आज बहुत उत्साह के साथ नया साल की मुबारक बाद दी जा रही है वैसे मुबारक बाद से क्या होता है मुबारक से अगर कोई फर्क पड़ता तो शायद  उसी का साल बुरा जाता जिसे कोई मुबारक बाद ना दिया हो । कितने ऐसे लोग है जो कल  रात भर शराब पीकर मुबारकबाद बाँटी और आज  नये साल की उनकी शुरुआत थाने मे चक्कर काट्ते  हुई हैं , कितने ऐसे भी है जो की  मुबारकबाद देते देते पिट गये कुछ ऐसे भी है जो मिल जाने पर तो मुबारक् बाद दे दिये लेकिन पूरा साल खराब करने मे एड़ी से चोटी लगा देगें । कुल मिलाकर काफी तदाद मे लोग आज जश्न मना रहे है  कुछ बहुत उदास भी है और अपनी उदासी को छुपा भी नही पा रहे गली -गली कहते फिर रहे हैं ये हमार नया साल नही ये तो ईसाइयों का नयाँ साल है हमारे कैलेंडर मे तो अभी पूराना साल चल रहा है हमारा धरम खतरे मे है सब ईसाई बने जा रहे है । मैंने  पूछ लिया भाई क्या तुम ईसाइयो  के कैलेंडर को नही मानते ?  उसने कहा  हम नही मान सकते हम अपने धरम के कैलेंडर अनुसार चलते है  फिर मैंने पूछा तुम तो संडे को भी आफिस जाते होगे  और अपने कैलेंडर के अनुसार ही छुट्टी भी मना लेते होगे । वो हँसने लगा  फिर मैंने पूछा  तुम्हारा जन्मदिन कब है  तो उसने कहा 22 जनवरी मैने कहा 22 जनवरी कों से कैलेंडर मे है तो वह फिर हँसने लगा | मैंने बात खत्म करते हुए कहा हो गया चलता हूँ तो उसने अंगरेज़ी मे कहा  गुड बाय को  घर ज़रूर आना मेर बर्थ डे हैं | तो कुछ इस प्रकार के लोग भी होते हैं जो धरम  का चादर ओढ के लोगो को गुमराह करते है क्योकि इनको हमेशा इसी चीज क फिक्र लगा रहता है की धरम खतरे मे है । मै आज तक ये समझ नही पाया की ये धरम हमेशा खतरे मे क्यु रहता है । किसी हिंदू से मिलो तो कहेगा हिंदू धर्म खतरे मे है मुस्लिम से मिलो तो कहेगा मुस्लिम धर्म खतरे मे है आखिर धर्म इतना कमज़ोर क्यो है । और आखिर जब सभी धरम खतरे मे है तो खतरा किससे है और क्यो है । और तुमको धरम की इतनी चिंता क्यो है?  शायद इसलिये की धरम से ही तुम्हारी जेब भरती है ऐसे लोग होते है जो धरम क खतरा बताकर लोगो को एक दूसरे से लड़वाते है और वो चुप बैठ कर तमाशा देखते है। मै ऐसे कितने लोगों को जानता हूँ जो उम्र भर हिंदुत्त्व वादी आंदोलन चलाये और लोगो के सामने इस्लाम धर्म का विरोध किया दूसरो के मन मे नफरत भरी और बाद मे खुद वही इस्लाम घर मे वैवाहिक सम्बंध बना लिये । तो ऐसे लोगो से बच के रहना चाहिये इनकी कथनी और करनी मे काफी अंतर होता है। अब इनको कौन बताये  की जो चीज़े तुम उपयोग कर रहें हों तुम्हारे धरम ने नही दिया है फिर भी उपयोग कर ही रहे हो ।


 नये साल मे सबसे ज्यादा खुशी पूंजीपति ही मनाते है अब उन का तो हक बनता है क्योकी अगर जश्न होगा तो लोगो के जेब से पैसे खर्च होगे थोक भाव से खरीद दारी होगी गोदाम का माल का खपत बढेगा तो लोगो के जेब के पैसे पूंजीपतियो के जेब मे चले जायेंगे  और ये आर्थिक, मंदी नाम के भूत से पीछा छूट जायेगा । तो उनका खुशी मनाना तो चलता है उनको  नये पूराने साल से क्या मतलब बस एक ही मकसद है  माल बिकता रहे मूनाफा जेब मे आते रहे  । वो तो चाह्ते है की लोग बारह महिने जश्न ही मनाते रहे और उनके जेब के पैसे हमारे जेब मे आते रहे ।पूंजीपतियो के लिये तो पूरी दुनिया बस  एक बाज़ार है और लोग खरीद्दार ।  ये पैसे का चक्र वही से शुरु होता है और वही पर खत्म भी आम आदमी के पास तो पैसा केवल छूने के लिये आता है एक हाथ से आया और दूसरे से निकल गया । खज़ाना तो पूंजीपतियो का ही भरा रहता है ।

एक प्रकार के और लोग भी है जो ये जश्न नही मना पाते है वो है गरीब मज़दूर उसके लिये तो हर दिन एक चुनौती होता है जीने के लिये संघर्श करता है । भूखे पेट को कैसे शांत रखा जाय इसके तरीके खोजता है । जीता है तो इस डर मे जीता है की कभी भी नगर निगम का बुल्डोजर ऊसके झोपड़ी गिरा सकता है । नया साल तो इनके लिये और भी डरावना होता है क्योकि अक्सर पैसे के नशे मे चूर रइसज़ादे ज़श्न मनाते हुए  लाँग ड्राईव पर निकलते हैं तो कितने  फुटपाठ पर  सोते हुये को कुचल कर चल  जाते है ।  लेकिन इनके बारे मे कौन सोचता है ?

यहां तो आँधी दौड़ चल रहे  है जिसमे सब भागे जा रहे है आखिर  ज़िन्दगी का एक और साल चला गया इसका गम नही है पर एक और साल आ गया है इसका जश्न सब मनाये जा रहे हैं आखिर कितने और नये साल आने हैं किसी को नही पता बस भागे जा रहे हैं । क्या कभी कोई बैठ कर सोचता है की क्यो भाग रहे और किसलिये भाग रहे है किससे भाग रहे है  इस भागने से क्या मिलेगा
कहीँ हम खुद से तो नही भाग रहे है कही हम अपनी जिम्मेवारियो से तो नही भाग रहे है । क्या हम वाकई एक जिंदगी को सही ढंग से जी पा रहे है या जिंदगी से दूर मौत के पास जाने के लिये भाग रहे हैं।

अगर हमारा जीने का  नजरिया नही बदलता है तो नये साल पूराने साल से क्या फर्क पड़ता है जैसा पहले था ये साल भी वैसा ही रहेगा । क्या केवल नया साल मुबारक हो कह देने से हमारी जिम्मेदारी खत्म हो जाती है अगर बद्लाव चहिये तो केवल नया साल मुबारक कह देने से काम नही चलेगा हमको प्रण लेना होगा की इस साल को मुबारक बनायेंगे अधिक से अधिक लोगो को खुशिया देंगे  समाज को एक नई उर्जा देंगे । गरीबो की आवाज को दबने नही देंगे , अपने अंदर के सोये हुये इंसान को फिर से जगायेंगे । तब जाकर ये साल मुबारक होगा नही तो हर साल की तरह इस साल का भी इंतजार करिये खतम होने का और फिर एक और  नया साल मुबारक हो बोलने का और ऐसे करते हुए एक दिन हम  खत्म हो जायेंगे लेकिन नया साल   हर साल के बाद  साल आते रहेगा ।

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