पूजा एक निजी विश्वास की पद्ध्ति है । हर धर्म के लोग , एक ईश्वर जिसे वह
मानता है , उसकी पूजा करता है । अलग अलग जाति , गोत्र और परिवार की भी अलग -
अलग पूजा पध्द्ति होती है । इस प्रकार का व्यक्ति धार्मिक कहलाता है ,
धर्मिक होना सम्प्रदायिक होना नही है । सम्प्र्दायिक तो वह तब बनता है जब
उसी अपनी पूजा पध्द्ति सर्वश्रेष्ठ लगने लगती है , तब समझना चाहिये कि उसमे
सम्प्र्दायिकता के बीज अंकुरित हो गये । फिर जैसे जैसे उसका अपने पूजा
पध्द्ति पर घमंड बढते जाता है , वैसे वैसे सम्प्रदयिकता उसके अंदर पनपने
लगती है । लेकिन जब वह इसका राजनीतिक इस्तेमाल करने लगता है तब वह
सम्प्रदायवादी कहलाता है । और राजनीति का यह तरीका सम्प्रदायवाद कहलाता है ।
धार्मिक होना अलग बात है सम्प्रदायिक होना अलग बात है । धर्म का
राजनीतिकरण करना ही सम्प्रदायिकता है ।
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