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बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

भगत सिन्ह और उनकी अज़ादी





28 सितम्बर 1907 को एक ऐसा बालक पैदा हुआ जो अपनी 23 साल के अल्पकालिक जीवन मे अंग्रेज़ी रियासत की चूले हिला दी । एक ऐसा नौजवान जो अगर होता तो आज होता उसकी उम्र 107 वर्ष होती । लेकिन गौर करने की बात यह है कि लाखो शहीदो के बीच वह शहीदे आज़म कैसे बन गया । वह उनसे अलग कैसे हो गया जबकी लडाई तो सबने लडी थी । शायद इसलिये क्योकि वह नौजवान 12 साल के उम्र मे जलियावाला बाग की मिट्टी लेने पहुच गया था । शायद इसलिये क्योकि 12 वर्ष के उम्र से ही सोचने विचारने की प्रकिया मे लग गया था । 16 साल की उम्र मे वह अपना घर छोड दिया था । और कम उम्र से ही जो एक प्रौढ चिंतक की तरह लेख लिखने लगा था । जिसमे विज्ञान और तर्क कूट कूट कर भरा था । वह नौजवान वाकई सबसे अलग था क्योकि वह 16 वे से अपने अंतिम समय 23 वर्ष की उम्र तक मे यानि केवल सात वर्ष मे एक क्रांतिकारी , एक संगठन कर्ता , एक सामाजिक चिंतक के रूप ऐसा काम कर डाला की आज वह विश्व के उन गिने चुने क्रांतिकारियो मे शुमार हो गया । जो कि विरले ही हैं ।
आप समझ सकते हैं कि शहीदे आजम भगत सिन्ह सात वर्ष की इस अवधि मे कितना कठिन मेहनत किया रहा होगा । की आज भगत सिन्ह के नाम से जन जन परिचित है । लेकिन विडम्बना ही कहिये की आज उनका केवल एक ही पक्ष देखा जाता है । लेकिन क्या वास्तव मे भगत सिन्ह वैसे ही थे जैसे की आज उन्हे चित्रित किया जा रहा है । ऐसी क्या बात है कि भगत सिन्ह का नाम तो सब लेते हैं पर उनके विचारो पर चुप हो जाते हैं । भगत सिन्ह के बारे मे हमारे पाठयपुस्तक से यही पढाया जाता है कि

“ भारत माता का सपूत वो आजादी का दीवाना था
हंस कर झूल गया फांसी पर भगत सिन्ह मस्ताना था “

लेकिन क्या भगत सिन्ह केवल अज़ादी का दीवाना था जो हंसते हंसते फांसी पर चढ गया ? क्या भगत सिन्ह की अपनी कोई सोच नही थी ? क्या उसके अपने कोई कार्यक्रम नही थे ? क्या उसके अज़ादी के मायने वही थे जो उस समय के कांग्रेस के थे ? क्या यह वही आजादी है जिसका सपना भगत सिन्ह ने देखा था । अगर ऐसा होता तो भगत सिन्ह कांग्रेस से अलग संगठन नही बनाते । अगर ये आजादी कांग्रेस के रास्ते आई है तो वो कैसी आज़ादी चाहते थे ?

भगत सिन्ह ने 8-9 सितम्बर 1928 को हिंदोस्तान सोशिलिस्ट रिपब्लिकन एशोसियेशन के स्थापना के समय यह कहा था की अगर कांग्रेस के रास्ते देश मे आज़ादी आयेगी तो गोरी सरकार तो चली जायेगी उसके बदले भूरी सरकार आ जायेगी । व्यवस्था जस की तस रहेगी अमीर और अमीर होते जायेगा गरीब और गरीब होते जायेगा और धर्म और जाति के नाम पर इतने दंगे होंगे की उन दंगो की आग को बूझाते बूझाते आने वाली नस्लो की कमर टूट जायेगी ।

भगत सिन्ह और कांग्रेस दोनो के अजादी के मायने बिल्कुल अलग थे भगत सिन्ह के आजादी का मतलब जनता की सामाजिक और आर्थिक आज़ादी से था। उन्होने जो आजादी का सपना देखा था उसके बारे मे 2 फरवरी 1931 को जेल मे लिखे एक लेख जो कौम के नाम संदेश के नाम से प्रसिध्द है उससे पता चलता है जिसमे भगत सिन्ह ने लिखा है कि “ हमारा लक्ष्य देश मे समाजवादी समाज की स्थापना करना है । कांग्रेस और हमारे दल मे यही अंतर है । राजनीतिक क्रांति से सत्ता शक्ति अंग्रेजो के हाथ से निकलकर हिंदोस्तानियो के हाथ मे आ जायेगी । हमारा लक्ष्य इस सत्ता शक्ति को उन हाथो के सुपुर्द करना है जिनका लक्ष्य समाजवाद है । इसके लिये मजदूरो और किसानो को संगठित करना होगा क्योकि उनके लिये लार्ड रीडिंग या इर्विन की जगह तेजबहादुर या ठाकुर दास आ जाये कोई फर्क नही पडेगा । पूर्ण स्वाधीनता से हमारे दल का उद्येश्य यही है । “

भगत सिन्ह कहा था कि हमारे दुश्मन जितने विदेशी पूंजीपति है उतने ही मेरे दुश्मन देशी पूंजीपति और रियासतदार हैं और देश की जनता को इन दोनो से लडना है ।

भगत सिन्ह ने क्रांति के बारे मे कहा था कि - “ क्रांति से हमारा अभिप्राय समाज के वर्तमान प्रणाली और वर्तमान संगठन को पूरी तरह उखाड फेंकना है । इस उद्येश्य के लिये हम पहले सरकार की ताकत को अपने हाथ मे लेना होगा । इस समय शासन की मशीन धनवानो के हाथ मे है । समान्य जनता के हित के लिये अपने आदर्शो को क्रियात्मक रूप देने के लिये कार्ल मार्क्स के सिध्दांतो के अनुसार संगठन बनाने के लिये हम सरकार की मशीन को अपने हाथ मे लेना चाहते हैं । हम उस उद्येश्य के लिये लड रहे हैं परंतु इसके लिये साधारण जनता को शिक्षित करना है ।“

उक्त बातो से पूरी तरह साफ होता है कि भगत सिन्ह की आज़ादी वो नही है जिसे हम आज़ादी समझते हैं । वह तो कार्ल मार्क्स के अनुसार एक ऐसी व्यवस्था चाह्ते थे जो शोषण से मुक्त हो , जिसमे न कोई मालिक हो न कोई नौकर जिसमे मुफ्तखोर के लिये जेल हो और मेहनत कश का राज हो , जिसमे सामाजिक सुरक्षा की पूरे गारन्टी हो शिक्षा स्वास्थ्य पर सबका बराबर अधिकार हो , अमीर और गरीब के हिसाब से स्कूल , अस्पताल न होकर एक जैसा हो । यही वैज्ञानिक समाजवाद है जिसमे न कोई छोटा हो न कोई बडा हो । शासन व्यवस्था मुफ्तखोरो के हाथ मे न होकर मजदूरो , मेहनतकशो के हाथ मे हो यही समाजवाद है यही विज्ञान है यही न्याय है । और यही असली आज़ादी है। और एक दिन भगत सिन्ह का यह सपना ज़रूर पूरा होगा ।

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