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शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

नेता भ्रष्टाचार करता नही चुनाव करवाता है ।


आज के समय मे एक आम इंसान के मन मे यह धारणा बन गयी है की जो पार्टी जीतने लायक होगी उसे ही हम वोट करेंगे । दूसरे को वोट करने से हमारा वोट खराब हो जायेगा । अब जिस पार्टी का प्रचार प्रसार ज्यादा होता है या कार्यकर्ता अधिक होते हैं वो लोगो के बीच मे यही बताते हैं की हम जीत रहे हैं । इसमे मे भी सोने मे सुहागा तब हो जाता है की जब कोई एग्जिट पोल साबित करदे कि फला पार्टी बहुमत ला रही है तो ऐसे मे जनता की गोलबंदी शुरु हो जाती है । फिर जनता को भी मुद्दो से कोई मतलब नही रह जाता है तब केवल यही लक्ष्य हो जाता है की फला पार्टी को हराना है या फला पार्टी को जिताना है । अब ऐसे मे अगर किसी पार्टी को बहुमत हासिल करना है तो फिर उसे ये साबित करने के लिये को वह जीत रहा है अधिक से अधिक पैसो की जरुरत होती है जिससे की बडी से बडी रैली , अधिक से अधिक कार्यकर्ता को रख सके । और उसे मीडिया को भी अपने पक्ष मे करना होता है । इस प्रकार एक ही चुनाव मे जिस पार्टी को बहुमत हासिल करनी है उसे अधिक से अधिक पैसो की जरुरत होती है । अब इतना पैसा कोई भी राजनीतिक पार्टी जनता से चंदा लेकर तो नही एकत्र नही कर सकती है । तो उसके पास दूसरा विकल्प भ्रष्टाचार ही होता है पार्टी ऐसे लोगो को टिकट देती है जो चुनाव मे ठीक ठाक पैसे खर्च कर चुनाव जीत सके । फिर पूंजीपतियो से सशर्त चंदा लिया जाता है कि हमारी पार्टी की नीतिया आपके पक्ष मे ही रहेंगी । फिर जब इस प्रकार वह पार्टी जीत जाती है तो नेता चुनाव मे किया गया खर्च ब्याज सहित वसूलता है और अगले चुनाव के लिये भी खर्च एडवांस मे वसूल लेता है ।वही कालाधन होता है अब जब नेता ऐसा करते हैं तो अधिकारियो को भी बढावा मिल जाता है फिर यह भ्रष्टाचार अधिकारियो से कर्मचारियो और फिर यह आम जनता मे आ जाता है । इस प्रकार हम देखते हैं की भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे की ओर आता है । वही दूसरी तरफ पार्टी भी जो पूंजीपतियो से चंदा ली रहती हैं तो जीतने के बाद पांच साल उनकी हरवाही करते हैं और उनके अनुसार ही कानून बनता है । अब ऐसे मे आम जनता सोचता है फला पार्टी को जिताने से कोई फायदा नही हुआ अब फला को जिताएंगे । इसमे भी वही शर्त होती है की कौन पार्टी इस पार्टी को हरा सकती है और कौन जीत सकती है । अब बाकी पार्टिया भी इस अंधी दौड मे शामिल हो जाते हैं । और हर पांच साल मे यह चक्र अपने आप को दोहराता है । अब अगर इस चक्र से बचना है तो दो ही तरीके हो सकते हैं या तो सौ प्रतिशत लोग राजनीति की समझ रखते हो । या फिर चुनाव प्रणाली मे बदलाव लाया जाय क्योकि भ्रष्टाचार का असली जड चुनाव है और अधिकांश कालाधन भी चुनाव के लिये ही इकट्ठा किया जाता है । इसलिये चुनाव प्रणाली मे बदलाव बहुत जरूरी है और इससे भ्रष्टाचार और कालाधन दोनो को खत्म किया जा सकता है । मेरे जानकारी अनुसार कुछ सुझाव इस प्रकार है ।
1. एग्जिट पोल को पूरी तरह से बैन किया जाय ।
2. .चुनाव के समय निजी धन या निजी प्रचार के उपयोग पर पूरे तरीके से रोक लगाया जाय ।
3. चुनाव को प्रतिस्पर्धा न बनाकर समान अवसर बनाना चाहिये जैसे सभी प्रत्यासियो को अलग अलग प्रचार करने छूटृ न देकर उनको एक साथ एक मंच पर अपनी अपनी कार्ययोजना बताने का मौका मिले । इसके लिये चुनाव आयोग या किसी अन्य सामुहिक संस्था द्वारा आयोजन करवाया जाये । आवश्यकता ये आयोजन कई जगह करवाई जा सकती है । इससे एक सही और योग्य आदमी का चुनाव आसान हो जायेगा । और उसकी कार्ययोजना भी पता चल जायेगा । वही दूसरी तरफ जहा राजनीतिक पार्टिया अधिक जन - धन वाले को टिकट देते थे वही पार्टीया फिर योग्य और बेहतर व्यक्ति को टिकट देंगी । इसमे जहा गलत व्यक्ति का चुनाव बंद हो जायेगा तो वही दूसरी तरफ देश को एक योग्य शासक मिलेगा । तभी सही मायनो मे लोकतंत्र होगा और तब ही सही अज़ादी होगी अभी तो लोकतंत्र धनवानो और बाहुबलियो के बीच कैद है ।


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