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बुधवार, 18 दिसंबर 2013

दलित वर्ग और भारतीय व्यवस्था

दलित वर्ग और   भारतीय व्यवस्था
एक स्वस्थ लोकतन्त्र की यह पहचान होती है की उसमे सभी वर्गो  बराबर  प्रतिनिधित्व हो । जब तक दबे कुचले वर्गो तक व्यवस्था नही पहुचती उसे स्वस्थ  लोकतान्त्रिक व्यवस्था कतई नही कहा जा सकता । लोकतन्त्र क मतलब ही यही होता है कि सत्ता बडे बडे मह्लो से निकलकर झोपडियो तक आये ।भारतीय लोकतन्त्र के सन्दर्भ मे अक्सर ये कहा जाता है कि यह विधायिका , कार्यपालिका , न्यायपालिका और मीडिया    इन चार स्तम्भो पर खडी है । लेकिन दुर्भाग्य ही है की इन चार स्तम्भो मे वन्चित वर्ग का रह्नुमा कोई नही है और जो है भी वो केवल नाम मात्र के लिये ही है जो केवल इसलिये है की कोई व्यव्स्था पर उन्गली ना उठा सके । और अक्सर ये सही समय पर मौन ही रह्ते है  । सविधान मे वन्चितो के लिये आरक्षण की व्यव्स्था की गयी है जो वन्चितो जनसन्ख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व देता है । लेकिन दुर्भाग्य है कि इसका फायदा गिने गिनाये लोग ही उठा पाते है । भारत मे दलित वर्ग ऐसा ही एक वन्चित वर्ग है जो सैकडो वर्षो से गूलामी की ज़न्ज़ीरो से ज़कडा हुआ है । जितना शोषण दलितो के साथ हुआ है शायद  पूरे दुनिया मे इसका दूसरा उदाहरण नही मिल सकता है ।  शरीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक तरह तरह से शोषण हुआ है । जहा एक तरफ उनसे कठोर से कठोरतम मेहनत लिया जाता था और जो उन्हे सबसे गन्दा और घिनौना काम होता था वो दलितो से ही करवाया जाता था । बद्ले मे मेह्नाताना या मज़दूरी के रूप मे झूठन खाने को दिया जाता था और फटे पूराने कपडे दिये जाते थे । दलितो को सम्पत्ती रखने और शिक्षा लेने अधिकार नही था । उन्हे
अछूत कहा जाता था बसाहट से अलग बस्ती होती थी। नदी नालो मे जानवर पानी पी सकते थे लेकिन दलित उस पानी को छू भी नही सकते थे । देवदासी प्रथा चलती थी जिसमे अगर किसी दलित के यहा सुन्दर बेटी पैदा हो जाती थी तो उसे दासी बना कर मन्दिरो और मठो मे रख लिया जाता था जहा उनका दैहिक शोषण होता था वैश्या फिर भी एक समय होता है लेकिन देवदासियो की स्थिति वैश्याओ से भी बदतर थी । और ये सब धर्म के नाम पर होता था । शासक बदलते गये लेकिन दलितो की स्थिति मे परिवर्तन नही हुआ । कालन्तर मे ब्रिटिश हुकुमत ने सर्वप्रथम दलितो के लिये व्यस्था मे आरक्षण की व्यवस्था की । जो की भारत के स्वाधीन होने पर भी सविधान मे रखा गया । दलितो को ऐसा नही है की आरक्षण का लाभ नही मिला है लेकिन हर मर्ज की दवा एकमात्र आरक्षण ही नही है ।  आरक्षण का लाभ लेकर दलितो मे एक मध्यम वर्ग तैयार हुआ जो की लगातार आगे बढने के लिये सन्घर्ष कर रहा है । लेकिन अभी भी एक बहुत बडा वर्ग अभी भी बहुत दयनीय स्थिती मे जीने को मज़बूर है । जहा तक शासन की सुविधाये नही पहुच पाती है । यह बहुत  बडी विडम्बना की ही बात है की दलित वर्ग भारत मे जितनी जनसन्ख्या है उस अनुपात मे सन्साधन मे उनकी हिस्से दारी नगन्य है । भारतीय  मीडिया मे भी  दलितो कि  हिस्सेदारी नगन्य है ऐसा नही है कि दलितो मे योग्य व्यक्तियो की कमी है । यही हाल न्याय पालिका और कार्य पालिका का भी है। भारत को अगर विश्व महा शक्ती और विकसित देश बनना है तो उसे समाज के विभिन्न वर्गो को साथ मे लेकर चलना होगा । नही तो भारत की एकता और अखन्डता खतरे मे पड सकता है । और वन्चित वर्गो मे असन्तोष पनप सकता है । वैस्वीकरण के इस दौर मे इस बात को ध्यान मे रखना अत्यन्त आवश्यक है ।

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