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दलित वर्ग और भारतीय व्यवस्था |
अछूत कहा जाता था बसाहट से अलग बस्ती होती थी। नदी नालो मे जानवर पानी पी सकते थे लेकिन दलित उस पानी को छू भी नही सकते थे । देवदासी प्रथा चलती थी जिसमे अगर किसी दलित के यहा सुन्दर बेटी पैदा हो जाती थी तो उसे दासी बना कर मन्दिरो और मठो मे रख लिया जाता था जहा उनका दैहिक शोषण होता था वैश्या फिर भी एक समय होता है लेकिन देवदासियो की स्थिति वैश्याओ से भी बदतर थी । और ये सब धर्म के नाम पर होता था । शासक बदलते गये लेकिन दलितो की स्थिति मे परिवर्तन नही हुआ । कालन्तर मे ब्रिटिश हुकुमत ने सर्वप्रथम दलितो के लिये व्यस्था मे आरक्षण की व्यवस्था की । जो की भारत के स्वाधीन होने पर भी सविधान मे रखा गया । दलितो को ऐसा नही है की आरक्षण का लाभ नही मिला है लेकिन हर मर्ज की दवा एकमात्र आरक्षण ही नही है । आरक्षण का लाभ लेकर दलितो मे एक मध्यम वर्ग तैयार हुआ जो की लगातार आगे बढने के लिये सन्घर्ष कर रहा है । लेकिन अभी भी एक बहुत बडा वर्ग अभी भी बहुत दयनीय स्थिती मे जीने को मज़बूर है । जहा तक शासन की सुविधाये नही पहुच पाती है । यह बहुत बडी विडम्बना की ही बात है की दलित वर्ग भारत मे जितनी जनसन्ख्या है उस अनुपात मे सन्साधन मे उनकी हिस्से दारी नगन्य है । भारतीय मीडिया मे भी दलितो कि हिस्सेदारी नगन्य है ऐसा नही है कि दलितो मे योग्य व्यक्तियो की कमी है । यही हाल न्याय पालिका और कार्य पालिका का भी है। भारत को अगर विश्व महा शक्ती और विकसित देश बनना है तो उसे समाज के विभिन्न वर्गो को साथ मे लेकर चलना होगा । नही तो भारत की एकता और अखन्डता खतरे मे पड सकता है । और वन्चित वर्गो मे असन्तोष पनप सकता है । वैस्वीकरण के इस दौर मे इस बात को ध्यान मे रखना अत्यन्त आवश्यक है ।
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