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मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

ये मानसिक और आर्थिक गूलामी का दौर है




पह्ले किसी देश को गूलाम बनाने के लिये आक्रमण किया जाता था सैन्य हस्तक्षेप से किसी देश मे राज़ किया जाता था देश बहुत महत्वपूर्ण होता था सम्राज्यवादी देश अलग से पहचान लिये जाते थे लेकिन अब  सम्राज्यवाद बहुत व्यापक हो गया है और यह अब एक देश तक सीमित नही है  अब सम्राज्यवादी देश  की जगह मल्टीनेशनल कम्पनियो ने ले लिया है। वैसे तो चाहे सम्राज्यवादी देश हो या मल्टीनेशनल कम्पनी दोनो का एक मात्र लक्ष्य मूनाफा ही होता  है। सामजिक विकास या समाजिक सुरक्षा से इनका दूर दूर तक कोइ सम्बन्ध नही होता लेकिन पह्ले तक सम्राज्यवाद देश दूसरे देश पर प्रत्यक्ष शासन करता था    वर्तमान समय नव उदारवाद का समय है अब पूरी दुनिया बाज़ार है आदमी अब आदमी नही ग्राहक है पह्ले भी दो वर्ग थे शोषक तथा शोषित   आज भी पूरे दुनिया मे दो ही वर्ग है फर्क बस इतना है की पह्ले ये देशो मे बटा था  लेकिन आज हर देश मे दो देश है जो वर्गो के आधार पर बटा है ।अब पूरी दुनिया बाज़ार है आदमी अब आदमी नही ग्राहक है जो केवल मूनाफे का साधन है मल्टीनेशनल कम्पनियो को देश विदेश किसी से कोई मतलब नही है ये केवल मूनाफे और लालच को ही जानते है अब सरकारे इनके हिसाब से बनती है चुनाव इनके हिसाब से होते है अपने वर्ग के हित के लिये इनकी राजनीतिक पार्टी और इनके नेता होते है  मीडिया पर इनका एकाधिकार है जो जनता के दिमाग को नियन्त्रित करने का काम करती है लोकतन्त्र अब लोकतन्त्र नही रहा चुनाव मे जनता प्रतिनिधी अपने अनुसार नही चुनती बल्की प्रतीनिधी जनता पर थोपा जाता है  इसके लिये पह्ले मीडिया के द्वारा जनता पर दबाव बनाया जाता है और बाद मे पैसे के द्वारा लोक्सभा चुनाव के पह्ले ही प्रधान्मन्त्री पद की दावेदारी करना इसी का उदाहरण है । आज के नौजावानो को इस हकीकत को समझना होगा की घोडा और घास की दोस्ती कभी नही हो सकती है और लालच और परोपकार एक साथ नही हो सकता मूनाफा और सामाजिक विकास एक साथ नही हो सकता है और पून्जीवाद से समाज का भला कभी नही हो सकता है । याद रहे अगर नीतिया आपके पक्ष मे हो तो देर सबेर इसका लाभ आपको ज़रूर मिलेगा लेकिन अगर नीतिया पून्जीवादी हो तो इसका लाभ केवल पून्जीपतियो को ही मिलेगा । इस लिये इस पून्जीवाद को अब दफन करना होगा ।  इस बार वोट डालने से पहले इस मकड्जाल को ज़रूर समझ ले की नीतीया और आपका नेता किसके साथ है ।

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