अमेरिका जैसे पूंजीवादी देश मे भी मजदूरी को लेकर इतना सख्त कानून है कि
राजनईक जैसे ओह्दे वाली देवयानी पर यह लागू हुआ । और उन्हे भी अपराधियो की
तरह सलूक किया गया । भारत मे इसको लेकर खूब हो हल्ला है और जरूरी भी है
क्यो कि भारत मे तो कम मजदूरी देना आम बात है ये कोई अपराध थोडे हुआ।
मजदूरो के बारे मे कौन सोचता है कैसी जिन्दगी जी रहे है कौन देखता है ।
हमारे यहा कोल इंडिया ठेका श्रमिको के लिये 464 रु मजदूरी भारत सरकार
द्वारा तय हुई है 15 प्रतिशत अंडर ग्राउंड एलाउंस की व्यवस्था है लेक
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खुले आम इस कानुन की धज्जिया उडाई जा रही है । यहा 464 रु प्रतिदिन तो दूर
कई कई माह वेतन ही नही दिया जाता है और जो दिया भी जाता है वो भी 180 तो
कही 190 के रेट से । यहा तो बात केवल विशेषाधिकार का होता है और मजदूरो का
कोई विशेषाधिकार नही है । इसलिये अमेरिका के इस कानुन पर भारत देश की ऐसी
प्रतिक्रिया स्वाभाविक है यहा कभी मजदूरो के लिये कोई सख्त कानुन बने इसके
आसार कम ही दिख रहे है । मोदी की रैली की भीड हल्ला मचा वाले मीडिया को 12
दिसम्बर के मजदूरो के जन्तर मन्तर रैली नही देख पाया । जिसमे करीब 6 लाख से
भी अधिक मजदूर एकत्र हुये थे और आनन फानन मे प्रधान मन्त्री कार्यालय को
हस्तक्षेप करना पडा । भारत देश लगता है अमेरिका से भी बडा पून्जीवादी बनने
की राह पर है ।
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