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रविवार, 12 अक्तूबर 2014

विज्ञान और तकनीक ....... समय की मांग


विश्व इतिहास की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है । यदि यह प्रक्रिया रुक जाये तो ठहराव पैदा होगा जिससे प्रगति मे बाधा होगी । पानी अगर एक जगह ठहर जाये तो उसमे गंदगी और बदबू आने लगती है । इसलिये धारा निरंतर बहते रहना चाहिये । आज के नौजवानो को प्रगति के अगले चरण को देखना है , उसको भविष्य की कार्य योजना बनानी है । फिर आज के कुछ महाशय प्रगति के अगले चरण को नही देख पाते हैं , वह इतिहास मे प्रगति को तलासने लगते हैं और अपने साथियो को भी इतिहास के पिछले मंजिलो मे धकेलने की कोशिश करते है । वे अतीत के गौरव का बखान करते हैं । इतिहास हमेशा आगे बढता है कभी पीछे नही मुडता है इसलिये वह लोग जो पिछले इतिहास को वापस लाने या मुड कर जाने की बात करते हैं या कुछ इस प्रकार कहे कि इतिहास की वही पुरानी मान्यताओ जाति , धर्म या सम्प्रदाय को फिर से पुनर्जीवित करने की बाते करते हैं , उसमे गोलबंद या एक होने की बाते करते हैं या उन्ही मे ही अपना गौरव तलासते हैं जिनका आज के वैज्ञानिक और तकनीकि युग मे कोई औचित्य ही नही है । वे प्र्कृति के इस नियम को नही समझते हैं की जिस मंजिल से आप आगे बढ चुके हैं वहा दुबारा नही जा सकते । आपका अगला चरण या अगली मंजिल एक नयी सम्न्वित मंजिल होगी जो आपकी नयी उपलब्धी होगी । इस नयी उपलब्धि के लिये आपको नई कल्पनाये और नये आदर्श बनाने होंगे पुराना युग कितना भी शानदार क्यो न हो वह हमे आगे बढने के लिये प्रेरित तो कर सकता है पर वापस नही आ सकता है ।
आज का समय विज्ञान और तकनीक का है पूरे विश्व मे नित नये अविस्कार हो रहे हैं नये नये कीर्तिमान रचे जा रहे हैं पुरानी मान्यताये रोज ध्वस्त हो रही हैं । भारत देश भी अगर मंगल पर पहुचा है तो केवल और केवल विज्ञान और तकनीक की बदौलत ही है । समय का पहिया निरंतर गतिमान रहता है जो समय के साथ संघर्ष करके आगे बढा है वही उन्नति पर है और जो ठहर गया या पीछे मुड के देखने लगा है जस का तस है । जिस समाज ने सबसे पहले विज्ञान को अपनाया है वो शिखर पर हैं और जो अभी भी अपनी मान्यताओ को नही छोड पा रहे है उसी मे अपना गौरव खोज रहे हैं उनका हश्र आप इराक , सीरिया मे जाकर देख सकते हैं । अभी समय केवल और केवल विज्ञान और तकनीक का है ।
धर्म और विज्ञान दो वैचारिक ध्रुव हैं जो कभी एक नही हो सकते नदी के दो किनारो की तरह .... दोनो को साथ लेके चलना दो नाव मे एक साथ सवारी करने जैसा है .... धर्म और विज्ञान दोनो मे बुनियादी फरक है जो कभी दोनो को एक नही कर सकता है ... धर्म जडसूत्र है ... धर्म चेतना (आत्मा) को प्रमुख मानता है और पदार्थ (शरीर ) को गौण मानता है .... धर्म का मानना है की दुनिया मे पहले इश्वर आया फिर फिर उसने दुनिया की रचना की .... जब की विज्ञान इसके विपरीत है ... जहा धर्म जडसूत्र है जिसमे परिवर्तन करने की मनाही है क्योकि यह उसे ईश्वरी ज्ञान मानता है इसलिये उसमे साधारण मनुष्य परिवर्तन नही कर सकता है वही विज्ञान क्रम बद्ध ज्ञान है और निरंतर परिवर्तन शील है यह हर बार परिवर्तित होकर उत्कृष्टता को प्राप्त करता है । वही धर्म के विपरीत विज्ञान ने पदार्थ को प्रमुख माना है और चेतना को गौण माना है , अर्थात विज्ञान का मानना है की पदार्थ पहले बनता है और चेतना बाद मे विकसित होती है , इसी तथ्य पर विज्ञान ने माना है की दुनिया की रचना एक प्रक्रिया के तहत है , और विज्ञान मे ईश्वरवाद की कोई जगह नही है । अब जब दोनो के बुनियाद मे ही इतना अंतर है तो दोनो को घालमेल करना दिमागी कमजोरी को दर्शाता है ।

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