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शनिवार, 21 दिसंबर 2013
देवयानी मामले मे भारत , अमेरिका और मजदूरी का कानून्
स्टलिन
स्टलिन अर्थात इस्पात का बना हुआ जैसा नाम वैसा काम । रूस के एक गरीब मोची
परिवार मे पैदा लेने वाले इयोसिफ विस्स्सरियोनविच उर्फ जोसेफ स्टलिन ने
दुनिया को बता दिया की एक गरीब मेहनतश भी सत्ता चला सकता है । और केवल
सत्ता ही नही ऐसे ऐसे कीर्तिमान स्थापित किये की आज भी स्टलिन का नाम
सम्मान से लिया जाता है । जर्मनी के हिट्लर की नाजी सेना को नाको चना
चबवाने वाले स्तलिन जब तक सोवियत युनियन की अगुआई की समाजवादी
अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर पहुचाया । मजदूरो के लिये नई नई नीतिया
बनाई । सामाजिक न्याय के दिशा मे काम किया सम्प्रादायिकता का पुरजोर विरोध
किया । कम्युनिस्ट पार्टी के बैनर तले काम करने वाले स्टलिन आज दुनिया के
सभी मेहनतकशो के मसीहा है ।
मीडिया का दलित विरोधी चेहरा
500 करोड रु के लागत से बनने वाले अम्बेडकर पार्क का उस समय मीडिया और
मनुवादी लोग खूब विधवा विलाप किये थे की ये सरकारी खजाने के पैसे का
दुरुपयोग है । जबकी उस पार्क मे लोग घूम सकते है ,बैठ सकते है और आराम कर
सकते है आज वही मीडिया और मनुवादी 2500 करोड रु के लागत से बन रहे पटेल की
प्रतिमा को देश क गौरव बता रहे है और उनके नाम पर एक से एक स्वान्ग रचा
रहे है । वाह रे दोगला नजरिया एक करे तो बलत्कार और दूसरा करे तो चमत्कार ।
फिर एक बार साबित हो गया की ये मीडिया दलित विरोधी और घोर जातिवादी है मै
पटेल जी के प्रतिमा क विरोध नही करता पर इस दोगली व्यव्स्था और नजरिये का
विरोध जरुर करता हू । सुना हू लोहा भी मांगा जा रहा है ठीक ही है कुछ
मूर्ती मे काम आयेगा और कुछ त्रिशूल बनाने मे ।
बुधवार, 18 दिसंबर 2013
दलित वर्ग और भारतीय व्यवस्था
दलित वर्ग और भारतीय व्यवस्था |
अछूत कहा जाता था बसाहट से अलग बस्ती होती थी। नदी नालो मे जानवर पानी पी सकते थे लेकिन दलित उस पानी को छू भी नही सकते थे । देवदासी प्रथा चलती थी जिसमे अगर किसी दलित के यहा सुन्दर बेटी पैदा हो जाती थी तो उसे दासी बना कर मन्दिरो और मठो मे रख लिया जाता था जहा उनका दैहिक शोषण होता था वैश्या फिर भी एक समय होता है लेकिन देवदासियो की स्थिति वैश्याओ से भी बदतर थी । और ये सब धर्म के नाम पर होता था । शासक बदलते गये लेकिन दलितो की स्थिति मे परिवर्तन नही हुआ । कालन्तर मे ब्रिटिश हुकुमत ने सर्वप्रथम दलितो के लिये व्यस्था मे आरक्षण की व्यवस्था की । जो की भारत के स्वाधीन होने पर भी सविधान मे रखा गया । दलितो को ऐसा नही है की आरक्षण का लाभ नही मिला है लेकिन हर मर्ज की दवा एकमात्र आरक्षण ही नही है । आरक्षण का लाभ लेकर दलितो मे एक मध्यम वर्ग तैयार हुआ जो की लगातार आगे बढने के लिये सन्घर्ष कर रहा है । लेकिन अभी भी एक बहुत बडा वर्ग अभी भी बहुत दयनीय स्थिती मे जीने को मज़बूर है । जहा तक शासन की सुविधाये नही पहुच पाती है । यह बहुत बडी विडम्बना की ही बात है की दलित वर्ग भारत मे जितनी जनसन्ख्या है उस अनुपात मे सन्साधन मे उनकी हिस्से दारी नगन्य है । भारतीय मीडिया मे भी दलितो कि हिस्सेदारी नगन्य है ऐसा नही है कि दलितो मे योग्य व्यक्तियो की कमी है । यही हाल न्याय पालिका और कार्य पालिका का भी है। भारत को अगर विश्व महा शक्ती और विकसित देश बनना है तो उसे समाज के विभिन्न वर्गो को साथ मे लेकर चलना होगा । नही तो भारत की एकता और अखन्डता खतरे मे पड सकता है । और वन्चित वर्गो मे असन्तोष पनप सकता है । वैस्वीकरण के इस दौर मे इस बात को ध्यान मे रखना अत्यन्त आवश्यक है ।
मंगलवार, 17 दिसंबर 2013
ये मानसिक और आर्थिक गूलामी का दौर है
पह्ले किसी देश
को गूलाम
बनाने के
लिये आक्रमण
किया जाता
था ।
सैन्य हस्तक्षेप
से किसी
देश मे
राज़ किया
जाता था
। देश
बहुत महत्वपूर्ण
होता था
सम्राज्यवादी देश अलग से पहचान
लिये जाते
थे लेकिन
अब
सम्राज्यवाद बहुत व्यापक
हो गया
है और
यह अब
एक देश
तक सीमित
नही है अब सम्राज्यवादी देश की जगह मल्टीनेशनल
कम्पनियो ने
ले लिया
है। वैसे
तो चाहे
सम्राज्यवादी देश हो या मल्टीनेशनल
कम्पनी दोनो
का एक
मात्र लक्ष्य
मूनाफा ही
होता
है। सामजिक विकास या समाजिक
सुरक्षा से
इनका दूर
दूर तक
कोइ सम्बन्ध
नही होता
। लेकिन
पह्ले तक
सम्राज्यवाद देश दूसरे देश पर
प्रत्यक्ष शासन करता था । वर्तमान
समय नव
उदारवाद का
समय है
। अब
पूरी दुनिया
बाज़ार है
आदमी अब
आदमी नही
ग्राहक है
पह्ले भी
दो वर्ग
थे शोषक
तथा शोषित आज भी पूरे
दुनिया मे
दो ही
वर्ग है
फर्क बस
इतना है
की पह्ले
ये देशो
मे बटा
था
लेकिन आज हर देश मे
दो देश
है जो
वर्गो के
आधार पर
बटा है
।अब पूरी
दुनिया बाज़ार
है आदमी
अब आदमी
नही ग्राहक
है जो
केवल मूनाफे
का साधन
है ।
मल्टीनेशनल कम्पनियो को देश य
विदेश किसी
से कोई
मतलब नही
है ये
केवल मूनाफे
और लालच
को ही
जानते है
अब सरकारे
इनके हिसाब
से बनती
है चुनाव इनके हिसाब से होते है अपने वर्ग के हित के लिये इनकी राजनीतिक पार्टी और
इनके नेता होते है मीडिया पर इनका
एकाधिकार है जो जनता के दिमाग को नियन्त्रित करने का काम करती है लोकतन्त्र अब
लोकतन्त्र नही रहा चुनाव मे जनता प्रतिनिधी अपने अनुसार नही चुनती बल्की प्रतीनिधी
जनता पर थोपा जाता है इसके लिये पह्ले
मीडिया के द्वारा जनता पर दबाव बनाया जाता है और बाद मे पैसे के द्वारा लोक्सभा
चुनाव के पह्ले ही प्रधान्मन्त्री पद की दावेदारी करना इसी का उदाहरण है । आज के
नौजावानो को इस हकीकत को समझना होगा की घोडा और घास की दोस्ती कभी नही हो सकती है
और लालच और परोपकार एक साथ नही हो सकता मूनाफा और सामाजिक विकास एक साथ नही हो
सकता है और पून्जीवाद से समाज का भला कभी नही हो सकता है । याद रहे अगर नीतिया आपके
पक्ष मे हो तो देर सबेर इसका लाभ आपको ज़रूर मिलेगा लेकिन अगर नीतिया पून्जीवादी हो
तो इसका लाभ केवल पून्जीपतियो को ही मिलेगा । इस लिये इस पून्जीवाद को अब दफन करना
होगा । इस बार वोट डालने से पहले इस
मकड्जाल को ज़रूर समझ ले की नीतीया और आपका नेता किसके साथ है ।
एक गरीब का दर्द
मुझे आपकी ज़रुरत
है ......
मेरे
तकलीफ को
सुनने के
लिये ....
मैने सुना है
आप काफी
समझदार हो...
आपके पास तमाम
एशो आराम
के साधन
है......
मेरे पास केवल
मेरा परिवार
है और
थोडी ज़मीन
है
जिसे मेरे बाबा
ने जोता
दादा ने
जोता
अब मै इसे
जोतकर अपना
और परिवार
का पेट
भरता
हू
आप कहते हो
इस
ज़मीन मे लाखो करोडो का
खनिज दबा
है
आप कहते हो
की आपकी
ज़मीन का
अधिग्रहन हो
गया है
मै कह्ता हू
मेरे से
बिन पूछे
मेरी ज़मीन
कैसे ले
सकते हो
मै वो घर
कैसे छोड
सकता हु
जिसमे मेरा
बचपन बीता
है
मेरे मा बाप
ने आखिरी
सान्स ली
है मै
अपनी ज़ामीन
नही दून्गा
ये अन्याय
है
आप कह्ते हो
इससे विकास
होगा तरक्की
होगी यहा
उद्योग खुलेगा
आप कहते हो
ज़मीन नही
छोडे तो
पुलिस भेजेन्गे
मै अगर पुलिस
से लडता
हु तो
आप सेना
भेजोगे
कोर्ट मे मेरे
खिलाफ़ केस
चलेगा मै
देश द्रोही
हो जाता
हू
मै डर कर
ज़मीन छोड
देता हू
परिवार पालने
के लिये
शहर आ
जाता हू
मै झुग्गी बना
कर परिवार
पालता हू फिर आप कह्ते
हो ये
अवैध बस्ती है
मेरी झुग्गी पर
बुल्डोजर चल
जाती है मै कहता हू
ये अन्याय
है
आप कह्ते हो
इससे विकास
होगा तरक्की
होगी
यहा नई कलोनिया बनेगी
मै फुटपाथ पर
आ जाता
हू
एक दिन एक
रईसज़ादे की
गाडी फुटपाथ
पर
सोते हुवे मेरे परिवार
के ऊपर
चढ जाती
है
मेरा परिवार उसी
फुटपाथ पर
मर जाते
है
मै कहता हू
ये अन्याय
है
आप कहते हो
फुटपाथ सोने
के लिये
थोडे न
बना है
लेकिन आप शर्मिन्दा
न हो
मै ज़िन्दा
हू
मै आदिवासी हू
कल भी
था कल
भी रहून्गा
शायद मेरे विनाश
से ही
आपका विकास
होगा
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