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मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

मै भारतीय राजनीति का चरित्र हूँ

जब तक विपक्ष मे रहता हूँ ... मै समाजवादी रहता हूँ ,
लेकिन जब जनता मुझे समाजवादी समझ कर चुन लेती है
जैसे ही सत्ता मिलती है .. मै पूंजीवादी हो जाता हूँ।
मै भारतीय राजनीति का चरित्र हूँ ... मै नही सुधरने वाला ।
जब तक विपक्ष मे रहता हूँ... मै स्वदेशी के नारे लगाता हूँ ,
लेकिन जब जनता मुझे राष्ट्रवादी समझ कर चुन लेती है ।
जैसे ही सत्ता मिलती है .. मै विदेशी निवेश का ढोल बजाता हूँ
मै भारतीय राजनीति का चरित्र हूँ ... मै नही सुधरने वाला ।
जब तक विपक्ष मे रहता हूँ... मै व्यवस्था परिवर्तन की हुंकार भरता हूँ ,
लेकिन जब जनता मुझे क्रांतिकारी समझ कर चुन लेती है ।
जैसे ही सत्ता मिलती है .. मै पूंजीपतियो के तलवे चाटता हूँ ,
मै भारतीय राजनीति का चरित्र हूँ ... मै नही सुधरने वाला ।

धर्म और सम्प्र्दायिकता

पूजा एक निजी विश्वास की पद्ध्ति है । हर धर्म के लोग , एक ईश्वर जिसे वह मानता है , उसकी पूजा करता है । अलग अलग जाति , गोत्र और परिवार की भी अलग - अलग पूजा पध्द्ति होती है । इस प्रकार का व्यक्ति धार्मिक कहलाता है , धर्मिक होना सम्प्रदायिक होना नही है । सम्प्र्दायिक तो वह तब बनता है जब उसी अपनी पूजा पध्द्ति सर्वश्रेष्ठ लगने लगती है , तब समझना चाहिये कि उसमे सम्प्र्दायिकता के बीज अंकुरित हो गये । फिर जैसे जैसे उसका अपने पूजा पध्द्ति पर घमंड बढते जाता है , वैसे वैसे सम्प्रदयिकता उसके अंदर पनपने लगती है । लेकिन जब वह इसका राजनीतिक इस्तेमाल करने लगता है तब वह सम्प्रदायवादी कहलाता है । और राजनीति का यह तरीका सम्प्रदायवाद कहलाता है । धार्मिक होना अलग बात है सम्प्रदायिक होना अलग बात है । धर्म का राजनीतिकरण करना ही सम्प्रदायिकता है ।

रविवार, 12 अक्तूबर 2014

विज्ञान और तकनीक ....... समय की मांग


विश्व इतिहास की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है । यदि यह प्रक्रिया रुक जाये तो ठहराव पैदा होगा जिससे प्रगति मे बाधा होगी । पानी अगर एक जगह ठहर जाये तो उसमे गंदगी और बदबू आने लगती है । इसलिये धारा निरंतर बहते रहना चाहिये । आज के नौजवानो को प्रगति के अगले चरण को देखना है , उसको भविष्य की कार्य योजना बनानी है । फिर आज के कुछ महाशय प्रगति के अगले चरण को नही देख पाते हैं , वह इतिहास मे प्रगति को तलासने लगते हैं और अपने साथियो को भी इतिहास के पिछले मंजिलो मे धकेलने की कोशिश करते है । वे अतीत के गौरव का बखान करते हैं । इतिहास हमेशा आगे बढता है कभी पीछे नही मुडता है इसलिये वह लोग जो पिछले इतिहास को वापस लाने या मुड कर जाने की बात करते हैं या कुछ इस प्रकार कहे कि इतिहास की वही पुरानी मान्यताओ जाति , धर्म या सम्प्रदाय को फिर से पुनर्जीवित करने की बाते करते हैं , उसमे गोलबंद या एक होने की बाते करते हैं या उन्ही मे ही अपना गौरव तलासते हैं जिनका आज के वैज्ञानिक और तकनीकि युग मे कोई औचित्य ही नही है । वे प्र्कृति के इस नियम को नही समझते हैं की जिस मंजिल से आप आगे बढ चुके हैं वहा दुबारा नही जा सकते । आपका अगला चरण या अगली मंजिल एक नयी सम्न्वित मंजिल होगी जो आपकी नयी उपलब्धी होगी । इस नयी उपलब्धि के लिये आपको नई कल्पनाये और नये आदर्श बनाने होंगे पुराना युग कितना भी शानदार क्यो न हो वह हमे आगे बढने के लिये प्रेरित तो कर सकता है पर वापस नही आ सकता है ।
आज का समय विज्ञान और तकनीक का है पूरे विश्व मे नित नये अविस्कार हो रहे हैं नये नये कीर्तिमान रचे जा रहे हैं पुरानी मान्यताये रोज ध्वस्त हो रही हैं । भारत देश भी अगर मंगल पर पहुचा है तो केवल और केवल विज्ञान और तकनीक की बदौलत ही है । समय का पहिया निरंतर गतिमान रहता है जो समय के साथ संघर्ष करके आगे बढा है वही उन्नति पर है और जो ठहर गया या पीछे मुड के देखने लगा है जस का तस है । जिस समाज ने सबसे पहले विज्ञान को अपनाया है वो शिखर पर हैं और जो अभी भी अपनी मान्यताओ को नही छोड पा रहे है उसी मे अपना गौरव खोज रहे हैं उनका हश्र आप इराक , सीरिया मे जाकर देख सकते हैं । अभी समय केवल और केवल विज्ञान और तकनीक का है ।
धर्म और विज्ञान दो वैचारिक ध्रुव हैं जो कभी एक नही हो सकते नदी के दो किनारो की तरह .... दोनो को साथ लेके चलना दो नाव मे एक साथ सवारी करने जैसा है .... धर्म और विज्ञान दोनो मे बुनियादी फरक है जो कभी दोनो को एक नही कर सकता है ... धर्म जडसूत्र है ... धर्म चेतना (आत्मा) को प्रमुख मानता है और पदार्थ (शरीर ) को गौण मानता है .... धर्म का मानना है की दुनिया मे पहले इश्वर आया फिर फिर उसने दुनिया की रचना की .... जब की विज्ञान इसके विपरीत है ... जहा धर्म जडसूत्र है जिसमे परिवर्तन करने की मनाही है क्योकि यह उसे ईश्वरी ज्ञान मानता है इसलिये उसमे साधारण मनुष्य परिवर्तन नही कर सकता है वही विज्ञान क्रम बद्ध ज्ञान है और निरंतर परिवर्तन शील है यह हर बार परिवर्तित होकर उत्कृष्टता को प्राप्त करता है । वही धर्म के विपरीत विज्ञान ने पदार्थ को प्रमुख माना है और चेतना को गौण माना है , अर्थात विज्ञान का मानना है की पदार्थ पहले बनता है और चेतना बाद मे विकसित होती है , इसी तथ्य पर विज्ञान ने माना है की दुनिया की रचना एक प्रक्रिया के तहत है , और विज्ञान मे ईश्वरवाद की कोई जगह नही है । अब जब दोनो के बुनियाद मे ही इतना अंतर है तो दोनो को घालमेल करना दिमागी कमजोरी को दर्शाता है ।

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

नेता भ्रष्टाचार करता नही चुनाव करवाता है ।


आज के समय मे एक आम इंसान के मन मे यह धारणा बन गयी है की जो पार्टी जीतने लायक होगी उसे ही हम वोट करेंगे । दूसरे को वोट करने से हमारा वोट खराब हो जायेगा । अब जिस पार्टी का प्रचार प्रसार ज्यादा होता है या कार्यकर्ता अधिक होते हैं वो लोगो के बीच मे यही बताते हैं की हम जीत रहे हैं । इसमे मे भी सोने मे सुहागा तब हो जाता है की जब कोई एग्जिट पोल साबित करदे कि फला पार्टी बहुमत ला रही है तो ऐसे मे जनता की गोलबंदी शुरु हो जाती है । फिर जनता को भी मुद्दो से कोई मतलब नही रह जाता है तब केवल यही लक्ष्य हो जाता है की फला पार्टी को हराना है या फला पार्टी को जिताना है । अब ऐसे मे अगर किसी पार्टी को बहुमत हासिल करना है तो फिर उसे ये साबित करने के लिये को वह जीत रहा है अधिक से अधिक पैसो की जरुरत होती है जिससे की बडी से बडी रैली , अधिक से अधिक कार्यकर्ता को रख सके । और उसे मीडिया को भी अपने पक्ष मे करना होता है । इस प्रकार एक ही चुनाव मे जिस पार्टी को बहुमत हासिल करनी है उसे अधिक से अधिक पैसो की जरुरत होती है । अब इतना पैसा कोई भी राजनीतिक पार्टी जनता से चंदा लेकर तो नही एकत्र नही कर सकती है । तो उसके पास दूसरा विकल्प भ्रष्टाचार ही होता है पार्टी ऐसे लोगो को टिकट देती है जो चुनाव मे ठीक ठाक पैसे खर्च कर चुनाव जीत सके । फिर पूंजीपतियो से सशर्त चंदा लिया जाता है कि हमारी पार्टी की नीतिया आपके पक्ष मे ही रहेंगी । फिर जब इस प्रकार वह पार्टी जीत जाती है तो नेता चुनाव मे किया गया खर्च ब्याज सहित वसूलता है और अगले चुनाव के लिये भी खर्च एडवांस मे वसूल लेता है ।वही कालाधन होता है अब जब नेता ऐसा करते हैं तो अधिकारियो को भी बढावा मिल जाता है फिर यह भ्रष्टाचार अधिकारियो से कर्मचारियो और फिर यह आम जनता मे आ जाता है । इस प्रकार हम देखते हैं की भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे की ओर आता है । वही दूसरी तरफ पार्टी भी जो पूंजीपतियो से चंदा ली रहती हैं तो जीतने के बाद पांच साल उनकी हरवाही करते हैं और उनके अनुसार ही कानून बनता है । अब ऐसे मे आम जनता सोचता है फला पार्टी को जिताने से कोई फायदा नही हुआ अब फला को जिताएंगे । इसमे भी वही शर्त होती है की कौन पार्टी इस पार्टी को हरा सकती है और कौन जीत सकती है । अब बाकी पार्टिया भी इस अंधी दौड मे शामिल हो जाते हैं । और हर पांच साल मे यह चक्र अपने आप को दोहराता है । अब अगर इस चक्र से बचना है तो दो ही तरीके हो सकते हैं या तो सौ प्रतिशत लोग राजनीति की समझ रखते हो । या फिर चुनाव प्रणाली मे बदलाव लाया जाय क्योकि भ्रष्टाचार का असली जड चुनाव है और अधिकांश कालाधन भी चुनाव के लिये ही इकट्ठा किया जाता है । इसलिये चुनाव प्रणाली मे बदलाव बहुत जरूरी है और इससे भ्रष्टाचार और कालाधन दोनो को खत्म किया जा सकता है । मेरे जानकारी अनुसार कुछ सुझाव इस प्रकार है ।
1. एग्जिट पोल को पूरी तरह से बैन किया जाय ।
2. .चुनाव के समय निजी धन या निजी प्रचार के उपयोग पर पूरे तरीके से रोक लगाया जाय ।
3. चुनाव को प्रतिस्पर्धा न बनाकर समान अवसर बनाना चाहिये जैसे सभी प्रत्यासियो को अलग अलग प्रचार करने छूटृ न देकर उनको एक साथ एक मंच पर अपनी अपनी कार्ययोजना बताने का मौका मिले । इसके लिये चुनाव आयोग या किसी अन्य सामुहिक संस्था द्वारा आयोजन करवाया जाये । आवश्यकता ये आयोजन कई जगह करवाई जा सकती है । इससे एक सही और योग्य आदमी का चुनाव आसान हो जायेगा । और उसकी कार्ययोजना भी पता चल जायेगा । वही दूसरी तरफ जहा राजनीतिक पार्टिया अधिक जन - धन वाले को टिकट देते थे वही पार्टीया फिर योग्य और बेहतर व्यक्ति को टिकट देंगी । इसमे जहा गलत व्यक्ति का चुनाव बंद हो जायेगा तो वही दूसरी तरफ देश को एक योग्य शासक मिलेगा । तभी सही मायनो मे लोकतंत्र होगा और तब ही सही अज़ादी होगी अभी तो लोकतंत्र धनवानो और बाहुबलियो के बीच कैद है ।


बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

शिक्षा का बाज़ारीकरण

एक ज़माना था जब तब निम्न तबको पिछ्डे दलितो को शिक्षा का अधिकार नही था
शिक्षा केवल उच्च वर्णो के लोगो के लिये था अब देश मे लोकतंत्र आ गया है इसलिये अब कानूनी रूप से तो ऐसा नही कर सकते लेकिन ये साज़िश अब भी ज़ारी है कि कैसे पिछ्डो दलितो को शिक्षा से वंचित रखा जाये क्योकि उस समय के उच्च वर्ण को अनपढ मज़दूर की ज़रुरत थी जो बिना अपना अधिकार जाने और बिना अपने श्रम कीमत जाने मज़दूरी करते रहे । और आज़ के उच्च या कहे पूंजीपती वर्ग को भी ऐसे ही मज़दूर चाहिये जिससे मुनाफा अधिक कमाया जा सके । इसलिये शिक्षा व्यवस्था ही ऐसा बनाया जा रहा है कि निम्न वर्ग का आदमी इस रेस से बाहर हो जाये इसके कुछ उदाहरण मैंने समझा है आपसे साझा कर रहा हूँ ।
1. शिक्षा को अधिक से अधिक महगा किया जा रहा है जिससे यह गरीब की पहुच से दूर हो जाये ।
2. सरकारी स्कूल कालेजो को बदहाल किया जा रहा है ताकि ज़ल्द से जल्द ये बंद हो सके ।
3. सरकारी स्कूल मे कम वेतन और ठेके पर शिक्षक रखा जा रहा है ताकि निजि स्कूल से प्रतिस्पर्धा ही ना हो पाये ।
अब आप ही समझिये जिस शिक्षा व्यवस्था मे दो तरह से शिक्षा पध्दति होगी जिसमे एक तरफ निजि कार्पोरेट स्कूल मे पढे बच्चे होंगे और दूसरी तरफ सरकारी स्कूल मे पढे बच्चे होंगे । नौकरी और मेरिट किसे मिलेगा अब आप समझ सकते हैं। और जो बचेगा वो रोजी रोटी के लिये अपने श्रम को किसी भी कीमत मे बेचने को तैयार रहेगा । कार्पोरेट स्कूलो के ज़रिये एक एलीट क्लास बनाया जा रहा है । जिसका शासन प्रशासन और सभी संसाधनो पर एकाधिकार रहेगा और बाकि तबका इन लोगो के रहम पर जियेगा ।

ईश्वर कौन है .....

एक बार एक सज्जन से मैंने पूछा ईश्वर कौन है ..... तो उसने कहा सृजनकर्ता ईश्वर है ........ तब से मैंने मज़दूर को ईश्वर समझना शुरु कर दिया । अगर दुनिया बनाने वाला ही ईश्वर है तो मजदूर ही है जो दुनिया बनाया है ..... अरे मंदिरो मे तो पत्थर रखे है अगर वो मंदिर सुंदर है वो पत्थर मे ईश्वर का प्रतिबिम्ब दिखता है तो उसको तराशने वाला उस ईश्वर को बनाने वाला तो मजदूर ही है ...................... अगर आप कहते हो पालनहार ही ईश्वर है तो मेरा ईश्वर तो किसान है जो अन्न उगाकर कर मेरा पालन करता है । अगर फिर भी कहते हो मै नास्तिक हूँ । तो ....... फिर कहते रहो..

ये सवाल आपका है और देश का भी.......

बहुत ही खेद के साथ कहना पड रहा है कि हमारे अमन पसंद देश मे कुछ लोगो के द्वारा जहर घोला जा रहा है । मै इस समय कुछ ऐसी बेतुकी घट्नाओ को देख रहा हूँ । जिसमे मामला बहुत छोटा या द्विपक्षीय है वो भी दंगो की शक्ल ले ली रही है यह मामला बेहद गम्भीर है की आज के इस आधुनिक समाज मे भी क्या कोई अपनी जाति या धर्म के लिये इतना कट्टर हो सकता है । इस समय मै सोशल मीडिया मे देख रहा हूँ कि प्रोफाइल फोटो मे तो एक दम कोट शूट लगा कर एकदम सभ्य दिखने की कोशिश करते हैं लेकिन जब ये पोस्ट लिखते हैं की....... मै कट्ट्रर हिंदु हूँ ।....... कोई लिखता है मै कट्ट्रर मुसलिम हूँ ... कोई लिखता है इस धर्म वालो को काटो तो ....कोई कहता है उस धरम वालो को काटो ......
ये बेशर्म लोग इतने मे ही नही रुकते जो लोग अमन चैन के साथ रहना चाह्ते है या कहे धर्म निरपेक्ष या सेकुलर हैं उन्हे फेकुलर , नामर्द , पाकिस्तानी या तरह तरह से फेसबूक मे गाली देकर या दूसरे तरीके से उकसाते हैं ।
क्या सभी विवादो का हल दंगा ही है या मारने काटने से ही ये हल हो सकता है .... जो ये सोचते हैं की दंगा से ही हल निकलेगा या ऐसे लोग जो की गर्व से अपने को कट्ट्रर हिंदू या कट्ट्रर मुस्लिम कहते हैं और हर हाल मे लडाई चाहते है जिनका खून बहुत ही ज्यादा ऊबाल मार रहा है । वे लोग एक बडे से मैदान मे इकटठा हो जाये और जितना खून खराबा करना है कर ले क्योकि यही लोग एक दूसरे के धर्म के भी दुश्मन है और मानवता के भी .... क्यो बे वजह समाज मे गंदगी कर रहे हो तुम्हारे कारण बेगुनाह भी मारा जाता है ।
मै सभी लोगो से आपील करता हूँ की कही भी अगर धर्म जाति की कोई बात करता है या आपको उकसाता है तो आप उसकी बातो मे बिल्कुल भी न आये क्योकि वो आपके धर्म या जाति का हितैशी बिल्कुल भी नही है बल्की वह राजनीति कर रहा है आपके धर्म या जाति के नाम पर क्योकि उसे सत्त्ता तक पहुचना है । ये राजनीति करने वाले न कभी दंगे मे मारे जाते हैं और ना ही दंगो मे इनके बहु बेटियो का बलात्कार होता है.... बल्कि दंगो के परिणाम आपको ही झेलना है ।
इसलिये ज़रा सतर्क रहिये और इस बारे मे गम्भीरता से सोचिये ।
धन्यवाद

राष्ट्र्वाद भी एक नशा ही है ....

राष्ट्र्वाद भी एक नशा ही है ....
जिसका सरकार भी बडे अच्छे तरीके से इस्तेमाल करती है । जब जनता गरीबी , बेरोजगारी , और महगाई पर बहस करने लगती है तो उससे उबरने का रास्ता यही है , किसी पडोसी देश से बैर करलो । जनता सारी समस्या भूल जायेगी , शासक के सारी गलती माफ हो जायेगी ,जनता भले भूख से तडप रही हो पर सपने पडोसी देश को सबक शिखाने के ही देखेंगे । राष्ट्रवाद का नशा ही कुछ इस प्रकार का होता है ।
अभी पाकिस्तान के हालात कुछ ऐसे ही हैं की वहा की सरकार बाकि मुद्दो को दबाने के लिये सेना ने सरहद पर हरकते तेज़ कर दी है । जिसमे भारत की स्थिती समझना बाकी है ।
जब दो देश आपस मे युध्द करे तो कारण एक यह भी हो सकता है की कैसे जनता का ध्यान भटकाया जाये इसमे दोनो देशो के शासको का भला हो जाता है और जनता हमेशा की तरह मार खाती है ।

साई कौन थे ?

साई भगवान थे , संत थे या इंसान थे या जो कुछ भी थे लेकिन आज के ये जितने पाखंडी संत , भगवान या इन्सान है उनसे तो लाख गुना अच्छे थे । एयर कंडीसनर बंगलो मे रहने वाले दुनिया के तमाम ऐशो आराम को भोगने वाले ये जो संत बनते है जिनके मुह से नफरत के अलावा कोई बात नही निकलती उनको तो पूरी उम्र गरीबी मे ज़ीने वाले और प्रेम का संदेश देने वाले साई के बारे मे बोलने मे भी शर्म आनी चाहिये । जहा देश महगाई बेरोजगारी और तमाम समस्याओ से ग्रस्त हैं वहा इस प्रकार के बेतुक मुद्दो को पैदा करना .... जनता को मुद्दो से भटकाने के अलावा और कुछ नही है ।

आरक्षण और योग्यता

आज सुबह एक मेरे मित्र ने मुझसे कहा की एस सी /एस टी को मुझे गाली देने का मन करता है क्योकि इनके वजह से हमको नौकरी नही मिल रही है , ये लोग हमारी नौकरी छीन रहे हैं इस देश मे हमारे लिये कुछ नही है, सरकार हर सुविधाये केवल एस सी/एस टी को ही दे रही है । मै जानता हूँ की यह उनके मन की उपज नही है बल्कि यह बात को मै कई बार सुन चुका हूँ । यह नफरत की राजनीति का हिस्सा मात्र है जिसमे यह बताकर कि तुम्हारा सारा हिस्सा ये एस सी / एस टी को दे दिया जा रहा है इस लिये तुम बेरोजगार हो , गरीब हो । इस प्रकार एस सी/एस टी के खिलाफ ज़हर भरा जा रहा है ।
अगर इनकी यह बात सच है की एस सी / एस टी दूसरे का हिस्सा भी छीन ले रहे हैं इसलिये बेरोजगारी है तो इस हिसाब से तो एस सी / एस टी अपने ज़नसंख्या जो की भारत की जनसंख्या का 23 % है उस से ज्यादा का देश के संसाधन (समपत्ति ) और नौकरी पर कब्ज़ा होना चाहिये क्या ऐसा है नही है जब उन्हे खुद अपना ही हिस्सा नही मिल रहा है दूसरो का हिस्सा क्या छीनेंगे । वैसे भी छीनने के लिये ताकतवर होना पडता है । मेरे मित्र को यह पता करना चाहिये की देश की सम्पत्ति आखिर मे किसके पास है और कौन धीरे धीरे जल जंगल जमीन पर कब्जा कर रहा है । मेरे मित्र को उससे लडना चाहिये लेकिन वो दबंग हैं पैसेवाले हैं उससे नही लड सकते कमज़ोर से लडना आसान है ।
अपनी बात को सही साबित करने के लिये उन्होने दूसरी दलील यह दी की योग्यता ही पैमाना होना चाहिये । मतलब अगर देखा ज़ाय की अगर एक मा के चार लडके हैं उनको रोटी का बराबर हिस्सा न देकर , रोटी को एक टेबल पर रख दिया जाय और चारो लडको को ये छूट दे दे की जो सबसे योग्य है वो ये रोटी खा ले । जब की छोटा भाई इतना छोटा है की वह टेबल तक पहुच ही नही पाता है । अगर मा को यह देख कर बुरा लग रहा है की सबसे छोटे को उसका अधिकार नही मिल रहा है और उसके बराबर हिस्सेदारी के लिये अगर मा उसे एक कुर्सी दे दे जिससे की वह अपने बाकि भाइयो के बराबर हो जाये तो बडे भाई को यह देखकर बहुत बुरा लगता है की मा छोटे भाई को ये सुविधा (आरक्षण )
क्यो दे रही है ।
अगर योग्यता ही पैमाना है तो फिर तो दुनिया का जो सबसे योग्य शासक है उसे ही भारत मे राज करना चाहिये । आप योग्यता किसे कहोगे एक भाई है जो सुबह उठकर घर का काम करता है , गाय चराता है अपनी रोजी रोटी के लिये पिताजी के साथ खेत मे काम करता है और उसके साथ साथ ही पढकर 60 % अंक लाता है जब की एक भाई है जिसको केवल पढ्ना है इस पढाई के लिये भी उसको हर विषय के अलग अलग शिक्षक है । पढने मे कोई तकलीफ न हो इसके लिये पंख़ा कूलर है । तबियत ठीक रहे इसके लिये फल जूस और तरह तरह की सुविधाये है इसके बाद वह 80% अन्क लाता है । कौन सबसे योग्य है।
अगर सबके लिये योग्यता का पैमाना एक रखना है तो सबके लिये लाईन (सामजिक- आर्थिक स्थिति ) एक रख्ननी होगी

भगत सिन्ह और उनकी अज़ादी





28 सितम्बर 1907 को एक ऐसा बालक पैदा हुआ जो अपनी 23 साल के अल्पकालिक जीवन मे अंग्रेज़ी रियासत की चूले हिला दी । एक ऐसा नौजवान जो अगर होता तो आज होता उसकी उम्र 107 वर्ष होती । लेकिन गौर करने की बात यह है कि लाखो शहीदो के बीच वह शहीदे आज़म कैसे बन गया । वह उनसे अलग कैसे हो गया जबकी लडाई तो सबने लडी थी । शायद इसलिये क्योकि वह नौजवान 12 साल के उम्र मे जलियावाला बाग की मिट्टी लेने पहुच गया था । शायद इसलिये क्योकि 12 वर्ष के उम्र से ही सोचने विचारने की प्रकिया मे लग गया था । 16 साल की उम्र मे वह अपना घर छोड दिया था । और कम उम्र से ही जो एक प्रौढ चिंतक की तरह लेख लिखने लगा था । जिसमे विज्ञान और तर्क कूट कूट कर भरा था । वह नौजवान वाकई सबसे अलग था क्योकि वह 16 वे से अपने अंतिम समय 23 वर्ष की उम्र तक मे यानि केवल सात वर्ष मे एक क्रांतिकारी , एक संगठन कर्ता , एक सामाजिक चिंतक के रूप ऐसा काम कर डाला की आज वह विश्व के उन गिने चुने क्रांतिकारियो मे शुमार हो गया । जो कि विरले ही हैं ।
आप समझ सकते हैं कि शहीदे आजम भगत सिन्ह सात वर्ष की इस अवधि मे कितना कठिन मेहनत किया रहा होगा । की आज भगत सिन्ह के नाम से जन जन परिचित है । लेकिन विडम्बना ही कहिये की आज उनका केवल एक ही पक्ष देखा जाता है । लेकिन क्या वास्तव मे भगत सिन्ह वैसे ही थे जैसे की आज उन्हे चित्रित किया जा रहा है । ऐसी क्या बात है कि भगत सिन्ह का नाम तो सब लेते हैं पर उनके विचारो पर चुप हो जाते हैं । भगत सिन्ह के बारे मे हमारे पाठयपुस्तक से यही पढाया जाता है कि

“ भारत माता का सपूत वो आजादी का दीवाना था
हंस कर झूल गया फांसी पर भगत सिन्ह मस्ताना था “

लेकिन क्या भगत सिन्ह केवल अज़ादी का दीवाना था जो हंसते हंसते फांसी पर चढ गया ? क्या भगत सिन्ह की अपनी कोई सोच नही थी ? क्या उसके अपने कोई कार्यक्रम नही थे ? क्या उसके अज़ादी के मायने वही थे जो उस समय के कांग्रेस के थे ? क्या यह वही आजादी है जिसका सपना भगत सिन्ह ने देखा था । अगर ऐसा होता तो भगत सिन्ह कांग्रेस से अलग संगठन नही बनाते । अगर ये आजादी कांग्रेस के रास्ते आई है तो वो कैसी आज़ादी चाहते थे ?

भगत सिन्ह ने 8-9 सितम्बर 1928 को हिंदोस्तान सोशिलिस्ट रिपब्लिकन एशोसियेशन के स्थापना के समय यह कहा था की अगर कांग्रेस के रास्ते देश मे आज़ादी आयेगी तो गोरी सरकार तो चली जायेगी उसके बदले भूरी सरकार आ जायेगी । व्यवस्था जस की तस रहेगी अमीर और अमीर होते जायेगा गरीब और गरीब होते जायेगा और धर्म और जाति के नाम पर इतने दंगे होंगे की उन दंगो की आग को बूझाते बूझाते आने वाली नस्लो की कमर टूट जायेगी ।

भगत सिन्ह और कांग्रेस दोनो के अजादी के मायने बिल्कुल अलग थे भगत सिन्ह के आजादी का मतलब जनता की सामाजिक और आर्थिक आज़ादी से था। उन्होने जो आजादी का सपना देखा था उसके बारे मे 2 फरवरी 1931 को जेल मे लिखे एक लेख जो कौम के नाम संदेश के नाम से प्रसिध्द है उससे पता चलता है जिसमे भगत सिन्ह ने लिखा है कि “ हमारा लक्ष्य देश मे समाजवादी समाज की स्थापना करना है । कांग्रेस और हमारे दल मे यही अंतर है । राजनीतिक क्रांति से सत्ता शक्ति अंग्रेजो के हाथ से निकलकर हिंदोस्तानियो के हाथ मे आ जायेगी । हमारा लक्ष्य इस सत्ता शक्ति को उन हाथो के सुपुर्द करना है जिनका लक्ष्य समाजवाद है । इसके लिये मजदूरो और किसानो को संगठित करना होगा क्योकि उनके लिये लार्ड रीडिंग या इर्विन की जगह तेजबहादुर या ठाकुर दास आ जाये कोई फर्क नही पडेगा । पूर्ण स्वाधीनता से हमारे दल का उद्येश्य यही है । “

भगत सिन्ह कहा था कि हमारे दुश्मन जितने विदेशी पूंजीपति है उतने ही मेरे दुश्मन देशी पूंजीपति और रियासतदार हैं और देश की जनता को इन दोनो से लडना है ।

भगत सिन्ह ने क्रांति के बारे मे कहा था कि - “ क्रांति से हमारा अभिप्राय समाज के वर्तमान प्रणाली और वर्तमान संगठन को पूरी तरह उखाड फेंकना है । इस उद्येश्य के लिये हम पहले सरकार की ताकत को अपने हाथ मे लेना होगा । इस समय शासन की मशीन धनवानो के हाथ मे है । समान्य जनता के हित के लिये अपने आदर्शो को क्रियात्मक रूप देने के लिये कार्ल मार्क्स के सिध्दांतो के अनुसार संगठन बनाने के लिये हम सरकार की मशीन को अपने हाथ मे लेना चाहते हैं । हम उस उद्येश्य के लिये लड रहे हैं परंतु इसके लिये साधारण जनता को शिक्षित करना है ।“

उक्त बातो से पूरी तरह साफ होता है कि भगत सिन्ह की आज़ादी वो नही है जिसे हम आज़ादी समझते हैं । वह तो कार्ल मार्क्स के अनुसार एक ऐसी व्यवस्था चाह्ते थे जो शोषण से मुक्त हो , जिसमे न कोई मालिक हो न कोई नौकर जिसमे मुफ्तखोर के लिये जेल हो और मेहनत कश का राज हो , जिसमे सामाजिक सुरक्षा की पूरे गारन्टी हो शिक्षा स्वास्थ्य पर सबका बराबर अधिकार हो , अमीर और गरीब के हिसाब से स्कूल , अस्पताल न होकर एक जैसा हो । यही वैज्ञानिक समाजवाद है जिसमे न कोई छोटा हो न कोई बडा हो । शासन व्यवस्था मुफ्तखोरो के हाथ मे न होकर मजदूरो , मेहनतकशो के हाथ मे हो यही समाजवाद है यही विज्ञान है यही न्याय है । और यही असली आज़ादी है। और एक दिन भगत सिन्ह का यह सपना ज़रूर पूरा होगा ।

अंधेर नगरी ......................

पहले जब कभी कभी किसी राज्य का राजा अपने राज्य मे राज्य की दशा देखने के लिये निकलता था तो भेष बदल कर निकलता था क्योकि उसे लगता था की जब आम आदमी बन कर जाउंगा तभी हकीकत मालूम होगी । औचक निरीक्षण से ही पर्दाफास होता है । दिल्ली मे स्थित बाल्मिक सदन जहा कभी महात्मा गांधी रह चुके है वहा से 2 अक्टुबर को प्रधानमंत्री जी सफाई अभियान की शुरुआत करेंगे । कल एन डी टी वी मे रविश कुमार ने एक रिपोर्ट दिखाई की कैसे वहा अभी से ही साफ सफाई , दीवालो की रंगाई , और बाल्मिक मंदिर मे टाईल्स बिछ रहा है । मतलब जब प्रधानमंत्री यहा आएंगे तब तक मे ये एकदम साफ सुथरा और चमक रहा होगा । फिर उस समय मीडिया की भीड यह दिखाईगी की कैसे एक साफ जगह को प्रधान मंत्री जी साफ कर रहे है । वाकई अचरज की बात है इस समय देखा जा रहा है मंत्री लोग कैसे झाडू लेकर फोटो शूट करा रहे हैं ।
अगर वो इस अभियान मे गम्भीर हैं तो अपने बंगलो से सफाई कर्मचारियो को निकाल दे और अपना काम खुद करे । नही तो सिर्फ फ़ोटो शूट कराने से अभियान सफल नही होगा ।
अभियान सफल करना है तो यह सबकी जिम्मेदारी होनी चाहिये की गंदगी जो करेगा साफ भी वही करेगा । नही तो जैसे हजारो साल ये रीति बना दी गयी है की गंदगी साफ करने और सफाई के लिये एक विशेष समुदाय को लगा दे । ये कैसा समाज है की जहा गंदगी करने वाले श्रेष्ठ माने जाते है और उस गंदगी को साफ करने वाले अछूत माने जाते है ........... वाह रे दोगला समाज .........

नोट : ‌ - यही समाज के लोग हैं जो अपने आप को विश्व गुरु भी कहते हैं ।

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